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मुबारक हो जन्म दिन

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हो मुबारक  तुझे जन्म दिन। मेरी बिटिया तुझे जन्म दिन। नित नई कामयाबी  मिले। फूल खुशियों के नित ही खिले। ख्वाब पूरे हो तेरे सभी । हर्ष से हो भरा जन्म दिन। हो  मुबारक तुझे जन्म दिन। प्यारी बिटिया तेरा जन्म दिन। रब करे तुझ  पे  मैहर सदा। भाग्य तुझ पर रहे जो फ़िदा। कष्ट  तुझको  न हो रत्ती भर , हर खुशी से मने जन्म दिन। हो  मुबारक तुझे जन्म दिन। प्यारी बिटिया .........। देश भी नाज तुझ पर करे । काम ऐसा तू जग में करें। हाथ सर पर बड़ो का रहे, खूब उत्सव बने जन्म दिन। हो मुबारक तुझे जन्म दिन। प्यारी बिटिया ..............। लम्बी लम्बी उमर हो तेरी। कीर्ति जग में अमर हो तेरी। नाम  तेरा  ही पहचान हो । हो दुआओं भरा  जन्म दिन। हो मुबारक तेरा जन्म दिन।   *मधुसूदन गौतम* सहायक धुन-- ज़िंदगी की न टूटे लड़ी J

दो मुक्तक , सांस ही काफी

कहने को तो सब कुछ है ,पर जीने को स्वांस ही काफ़ी। निर्मल जल मिल जाये तो फिर जीना इंसाफी। मिले शब्द फिर गगन व्योम से ,और अनल से तेज मिले, धरा से सबके बाद देह है ,बाकी सब तृष्णा नाकाफ़ी। छेड़ रहा मानव इन सबको ,खुद को खुदा समझकर। एक अनिल ने असर  दिखाया, अपना रूप बदलकर। कराह उठी सारी मानवता ,ठौर नही बचने की , अब तो अरे समझ ले मानव, कर तू कर्म सम्भलकर।            *कलम घिसाई *

इतना भय क्यो?

 *भय किससे,किसको ,किसलिये* ************************** थम सा गया है, यह जन जीवन , यह मचलते तन, पार्लर जाते बदन, उछलता यौवन, शरारती बचपन , कक्ष में रम सा गया है थम सा गया है। यह जज्बाती मन, यह चलायमान धन, यह सुलगते प्रश्न, राजनीतिक जतन, यह  सारा सयानापन , सब सहम सा गया है। बस थम सा गया है। यह ग्रामवीथी में जन, वणिक वीथी में धन , ये  जन मन गण, मादरे वतन, जम सा गया है। बस थम सा गया है। बड़े बड़े जो जीव, बनाते एटम बम, न डरे आसमानों से, न डरे तूफानों से , रण के बाँकुरे , आतंकी सिरफिरे , कब किससे डरे, मन मे आये जो करे, एक सूक्ष्म जीव ने , सब अक्षम सा किया है। सब थम सा गया है।  *अंत मे एक प्रश्न* इतना भय किस से ? अपने आप से , डर किस बात का , मौत का ? स्वयं की ,या किसी की?  परिवार की ---- समाज की...  वतन की ... मानवता की.. फिर किस की ?  किसके लिए ?  यक्ष प्रश्न बन सा गया है। सब कुछ थम सा गया है।        © *कलम घिसाई*

सड़क का चैन

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मै बरसो से न सोई थी ,मगर कल चैन से सोई। सिसकती तो मैं रहती थी ,मगर कल फूट कर रोई। हज़ारो पांव पड़ते थे ,मेरे सीने पे रोजाना। मगर था दर्द जो मेरा कहाँ कब किसने पहचाना। मगर कल एक भी आहट ,नही मेरे पास में होई। यही कारण था खुशियों से मैं कल फूटकर रोई। सड़क तो हूँ ही मैं लेकिन ,मेरे जज़्बात होते है। सजीवों की तरह लेकिन ,यही सब  जड़ में होते है। किसी ने उनको भी समझा ,मैं यह सोच कर रोई। यही कारण था खुशियों से मैं कल फूटकर कर रोई। भिखारी बैठकर मुझपर ,करे फरियाद आजादी। मगर सोचा नही मेरी भी ज़रूरत है ये आजादी। मगर उसकी वजह से आज तो आज़ाद मैं होई। यही कारण था....... कल में फूटकर.....। कदम तो  रौंदते हमको दिन रात सबके ही। करम तो झेलने पड़ते ,सड़क होंने से सबके ही। मगर बेजान का निकला,फरिश्ता तो यहां कोई । यही कारण था खुशियों से मैं कल फूटकर रोई। लगे जो दाग पीकों के ,बदन पर रोज़ ही गहरे। कभी सिगरेट ने झुलसा ,कभी फेंके गए ठर्रे। मगर कल रात तो गंगा ,के ज्यूँ निर्मल ही मैं होई। *कलम घिसाई।*

दिव्य कृष्ण लीला

दिव्य कृष्णलीला *************************** धुन-- चांदी की दीवार न थोड़ी प्यार भरा दिल तोड़ दिया। ******************************** हे पूर्ण कला के अवतारी ,गुणगान नही तेरा सम्भव। हे नटवर नागर गिरधारी, यशगान नहीं तेरा सम्भव। 00 ****************************** बचपन की तेरी लीलाएं,बस मंत्रमुग्ध करने वाली। बालछवि तेरी मोहक सी,बरबस मन हरने वाली। वो निश्छल सरल स्मित तेरी, उर के अंदर रमने वाली। वो माखन की वो मिश्री की, मधुर स्वाद भरने वाली। हे माखन के चोरक सुन ले , जप ध्यान नही तेरा सम्भव। हे पूर्ण कला के अवतारी.....1 बचपन की तेरी क्रीड़ाएँ, वो गोप ग्वाल के संग वाली। हे नटखट अटपट सी बातें,नहीं समझ आने वाली। जान बूझकर तुझसे भिड़कर,वो तेरी मीठी गाली। धेनु के संग वेणु के संग,रेणु के संग रमने वाली। हे गिरधर गोवर्धन का ,गुणगान नहीं तेरा सम्भव। हे सारे जग के जगतपति ,यशगान नही तेरा सम्भव। 2 क्रमश:-----         *कलम घिसाई* गतांक से आगे..... मोह नही तुमको मोहन कुछ,कितनी गाथा भरी पड़ी। जन्म देवकी से पाकर ,कितने पल संग तेरे खड़ी। वासुदेव वसुदेव का रिश्ता, भी लगती कुछ ऐसी कड़ी। ओर ज

★समझते हो ना ★

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  ** तुम शब्दों को गोली मारो,मेरा मौन समझते हो ना। अपना रिश्ता क्या है भूलो,मैं हूँ कौन समझते हो ना। रिश्ते क्या है स्वाद बदलते , पककर शब्दो  की भट्टी में , मिलता इनमें अक्सर जाता ,मिर्ची लोन समझते हो ना । कौन बड़ा है हममें यारा, इन पचड़ों से मतलब क्या है , मंदिर की चौखट पर तो तुम,सबको गौण समझते हो ना। अपना घर भी मंदिर जैसा ,ना छोटा न कोई बड़ा है , इसको  तुम पूरा मत जानो ,आधा पौन समझते हो ना। यह दिल दफ्तर का कोना है ,आते जाते जाने कितने , पास नहीं वो पास हमारे , टेलीफोन समझते हो ना। दो दिन से पहचान हमारी , पर जन्म जन्म का नाता है , यह पिंजर जो बना देह का ,पत्थर भौन समझते हो ना। सो छोड़ो अब सब बातों को ,आकर मन मे बस जाओ , इस धड़कन को सुनो प्रेम से ,प्यारी रिंगटोन समझते जो ना। *कलम घिसाई * {*पाठक की बस एक  टिपण्णी बकवास को खास बना देती , सो मुझको तुम मार्ग दिखाओ  जैसे ड्रोन समझते हो ना।}  .)

भोजन ,भक्ति ,भोग

  💐💐 आज का मुक्तक💐💐 भोग ,भक्ति, भोजन सदा , फल देते तन्हाई में। मूर्ख ही इनको करते ,केवल जग दर्शाई में। मन तुष्ट  हो भी जावे , पर इष्ट नहीं हो सकता , देता जो बना रोगी  , ढोंगी जग हँसाई में।       *कलम घिसाई*  ,